विकारों को दूर करें

विकारों को दूर करें


पढऩे व सुनने को मिलता है कि बड़े से बड़े आदमी को चाहे वह भगवान कहलाने वाले ब्रह्मा, विष्णु, महेश क्यों न हो कर्मों का फल भोगना पड़ा है। हमने चोरी की, हत्या की, व्याभिचार किया तो गलत काम हुआ और इस गलत काम के लिए मन कचौटते रहेगा। गलत कर्म का संस्कार हमारे जीवन को गंदगी से भर देगी। गलत संस्कार कांटे के समान दुखदायी होंगे। इसलिए साहेब कहते हैं कि इस मानव शरीर में सत्संग रूपी बाजार पाकर अगर आप संबल नहीं किये, अच्छे संस्कारों की पूंजी नहीं बना पाये तो आप धोखा खा रहे हैं। धन परिवार बड़ा भूखण्ड विशाल भवन आदि कुछ काम न देगा।

लोग कहते है कि विद्या, धन, पद, प्रतिष्ठा की उन्नति से मेरी उन्नति हुई पर सही मायने में उन्नति मेरी नहीं हुई उन्नति तो विद्या, धन, पद-प्रतिष्ठा की हुई। मेरी उन्नति तो तब होगी जब मेरा मन मायाजाल के द्वंद से छूटकर निर्मल व प्रशांत हो जाएगी। जीवन में दोष होता है तो दुख है। दोष निकल जाने से दुख नहीं होगा। महापुरुषों को दु:ख देने नाना उपाय किए गए परन्तु वे दुखी नहीं हुए क्योंकि वे निर्दोष थे। साहेब ने एक बहुत मार्मिक बात कहीं है- जो कुछ करऊं सो पूजा अर्थात हमारा हर कार्य पूजा के समान पवित्र होना चाहिए। भोजन बनाये प्रसादवत प्रेम से व परोसे भी प्रेम से तो पूजा है। झुंझलाकर राग, द्वेष से मन को मलिन कर भोजन बनाये व परोसे तो वह पूजा कहां होगी। दुकानदारी भी ईमानदारी से अपने उदरपोषण के लिए मुनाफा लेते हुए कहें। तौल मारकर मिलावटबाजी कर कार्य करें और मूर्तियों के सामने घंटों घंटी बजायें पूजा नहीं होगी। आफिस कार्य ईमानदारी से निपटायें पछापछी व घुसखोरी से काम करें तो पूजा कहां होगी। चलते-फिरते प्राणियों में जो देवत्य दर्शन नहीं कर पाता वह अन्यत्र देवत्व दर्शन नहीं कर पायेगा।

आदमी रोते हुए जनमता है इसे कोई रोक नहीं सकता पर वह चिंता करते हुए जीता है व पश्चाताप करते हुए मरता है, यह हमारी असफलता है। चिंता करना एक आदत है। चिंता अज्ञानता से होती है। आदत और अज्ञान छूट जाये तो चिंता छूट जाय। जो जीवनभर राग-द्वेष में पड़े रहेगा, जिसने अपने मन को शुद्ध न कर मन को कूड़ा कचरा भर रखा है, जिसने आध्यात्मिक उन्नति के लिए कभी सत्संग नहीं किया मरते समय पश्चाताप करना ही पड़ेगा।

साहेब कहते हैं- ऐसे उत्तम चोला सत्संग का साधन पाकर भी जिन्होंने सम्बल नहीं किया, रास्ते के खर्च का प्रबंध नहीं किया, पवित्र करमो द्वारा अपने संस्कारों का समुच्चय नहीं किया उन्होंने अपने जीवन को खो दिया। समय रहते जिन्होंने अच्छी कमाई नहीं की उम्र ढल जाने पर आंख में दिखाई न देने पर, कान से सुनाई न देने पर, लडख़ड़ाते हुए कदम रखने पर आध्यात्मिक कमाई कैसे कर पायेगा। इसलिए हम सभी को जीवन रहते रहते जब तक अच्छा समय है अपने मन को शोधकर विकारों को दूर कर दें। यही जीवन का सम्बल व सम्पदा होगी। साहेब ने कहा ही है:-

जिन-जिन सम्बल ना कियो अस पुर पाटन काय।
झालि परे दिन आथये सम्बल कियो न जाय॥

टिप्पणियाँ