जीवन, अन्र्तमुख, बर्हिमुख

जीवन, अन्र्तमुख, बर्हिमुख

जीवन है तब तक सब कुछ है। घर है, मकान है, नाते-रिश्ते हैं, यार दोस्त हैं, पैसा है, पद है, सम्मान है और कई संबंध हैं पर ज्यों ही जीवन का अन्त हुआ सब यहीं रह जाता है। हम चले जाते हैं। सब कुछ छोड़कर जाना पड़ता है इसलिए कहा है कि मोह बिल्कुल न रखो क्योंकि साथ कुछ जाने वाला नहीं। गुरुनानक ने किसी से कहा था कि भई एक सुई रख लो जब स्वर्ग में मिलेंगे तो मुझे वापस कर देना तो उस सज्जन ने जवाब दिया था कि गुरुजी साथ तो कुछ जा ही नहीं सकता, सुई कैसे ले जा सकूंगा। शरीर तो यहीं छूट जाएगा, राख बनकर या दफना दिया जाएगा। बाद में मिट्टी बन जाएगा, कीड़े-मकोड़े खा जाएंगे। इसे कहते हैं-अन्र्तमुखी होना। अंदर से समझ आ जाए कि जीवन क्या है? सार क्या है? पर जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वह बर्हिमुखी होता जाता है। सब कुछ चिपकने लगता है उसके साथ अंदर-बाहर मोह का लेप लगने लगता है। उससे छूटने के लिए वैराग्य का पानी चाहिए। और निरंतर अभ्यास चाहिए। कहा है- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। बच्चे को गहरी नींद क्यों आती है और लम्बी भी। पर ज्यों-ज्यों उमर बढ़ती जाती है नींद कम होती जाती है। बाद में वृद्धावस्था में तो चार-पांच घंटे तक रह जाती है। बच्चे का मन खाली रहता है बड़े आदमी का या वृद्ध के मन में बहुत कुछ भरा रहता है। इसलिए नींद में कमी होती है फिर उम्र के साथ शारीरिक आवश्यकताएं भी कम हो जाती हैं। मतलब शारीरिक श्रम, थकावट तो नींद में फर्क पड़ता है लेकिन जितनी देर सोए गहरी नींद सोए नि:स्वप्न निद्रा या जो कुछ आपने सपने में देखा वह सुबह उठते साथ विस्मृत हो जाए। लोग अक्सर सपनों की चर्चा करते हैं। हमने यह देखा, वह देखा सपनों को आगामी घटनाओं से जोड़ते हैं इसके बारे में तो कोई मनोवैज्ञानिक ही बता सकता है कि क्या अर्थ होता है। लोगों ने सपने देखे और वे सच हुए। इस महज संयोग कहा जाए या कुछ और हम नहीं जानते। हर सपने का अलग-अलग मतलब होता है ऐसा लोग कहते हैं। ऐसे भी लोगों के बारे में सुना-पढ़ा है कि लोग कई दिन तक नहीं सोए। युद्धभूमि पर सैनिकों के साथ यही होता होगा। आतंकवादियों से लड़ते चौबीस घंटे चौकन्ना रहना पड़ता होगा जो भी मनोविज्ञान है अन्र्तमुख, बर्हिमुख की बात है यह ज्ञानियों के लिए है किसी मूढ़ को क्या समझाया जा सकता है। शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों से क्या समझा जाएगा। उन्हें भरपूर नींद आती है। यह श्रम की देन है। कई योगी समाधि ले लेते हैं जिसमें न सोना है न जागना है। बस ध्यान की मुद्रा में बैठना है। जमीन के बाहर या अंदर कई दिन भी लगते हैं। यह प्राणायाम की एक क्रिया है। बहुत साधना, अभ्यास के बाद सधती है। हमारे यहां योग, ध्यान, एक ऐसा विज्ञान है जो अब दुनिया में फैल रहा है, शांति फैला रहा है। लोगों के जीने के ढंग बदल दिए। स्वामी विवकेानंद, स्वामी योगानन्द परमहंस, महर्षि महेश योगी, बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर जी, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी के भाई-बहन और अन्य कई श्रीमंत एवं विदुषी महिलाएं विश्व में भारत में शांति के लिए प्रयासरत हैं। हमारे यहां तो प्राचीनकाल के यह सिलसिला चल रहा है। ऋषि, मुनिभक्त, प्रवचनकार, संत, सब अपना-अपना काम कर रहे हैं। कुछ भला ही हो रहा है समाज का लोगों को नहीं तो यह दुनिया कितनी अशांत हो जाती। दीपक चोपड़ा, नार्मन विसेन्ट पील जैसे लोग अपने अच्छे सकारात्मक विचारों से दुनिया का बहुत भला कर रहे हैं। हम भी इस अभियान में जुड़ जाएं और सुख शांति बहाल करने में अपना हाथ बंटाएं। बस यही मेरा संदेश है।

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