नवरात्र स्पैश्ल: ग्रहों के कोहराम से बचने, खास वरदान की इच्छा रखने वाले करें...

नवरात्र स्पैश्ल: ग्रहों के कोहराम से बचने, खास वरदान की इच्छा रखने वाले करें...

दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायों का अपना-अपना महत्व है। जिनका यदि भक्ति भाव से पाठ किया जाए तो फल बड़ी जल्दी मिलता है लेकिन लालच से किया गया पाठ फल नहीं देता यदि किसी भी जातक को राहू, शनि, मगंल से बुरे फल मिल रहे हों तो दुर्गा सप्तशती का पाठ पूरी क्षमता रखता है उनके बुरे दोषो को दूर करने की। वैसे तो इसका पाठ कभी भी किसी भी समय किया जा सकता है लेकिन नवरात्र में इसके पाठ  का विशेष महत्व है।

ग्रहों के कोहराम से बचने और खास वरदान की इच्छा रखने वाले नवरात्र में अवश्य करें दुर्गा सप्तशती का पाठ

1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता, मानसिक विकार, जीवन में आ रहे संकटों को दूर करने और सही दिशा की ओर ले जाता है दुर्गा सप्तशती का प्रथम अध्याय।

2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा, झगड़ा आदि में विजय पाने के लिए द्वितीय अध्याय का पाठ राम बाण सा काम करता है।

3- तृतीय अध्याय- शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए तृतीय अध्याय संजीवनी बूटी जैसा प्रभाव दिखाता है।

4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति, शक्ति अथवा मां के दर्शनों के चाहवान चतुर्थ अध्याय का पाठ करें।

5- पंचम अध्याय- जीवन से हताश और परेशान लोग यह पाठ नियमित करें। कभी कोई इच्छा अधूरी नहीं रहेगी।

6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना भूत-प्रेत, राहु-केतू के अशुभ प्रभाव से सदा के लिए छुटकारा पाने के लिए षष्ठम अध्याय का पाठ करें।

7- सप्तम अध्याय- मन की इच्छाएं पूरी करने के लिए सप्तम अध्याय का पाठ करें लेकिन उसमें किसी का अहित न हो तो यह अध्याय कार्यरत है ।

8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिए अष्टम अध्याय का पाठ करें। वशिकरण गलत तरीके से नहीं अपितु भलाई के लिए हो और कोई बिछड़ गया है तो जल्दी ही मिल जाएगा।

9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश में यह पाठ उसके लौटने का साधन बनता है एवं पुत्र प्राप्ति के लिए भी सहायक है।

10- दशम अध्याय- नेक संतान की कामना रखने वाले या बच्चे गलत रास्ते पर चल रहे हों तो उन्हें सही मार्ग पर लाने के लिए दशम अध्याय का पाठ पूर्ण फलदाई है ।

11- एकादश अध्याय- कारोबार में हानि, पैसा न रूकता हो या बेकार के कामों में नष्ट हो जाता हो तो एकादश अध्याय का पाठ करें।

12- द्वादश अध्याय- समाज में मान-सम्मान चाहते हैं तो द्वादश अध्याय का पाठ करें।

13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्त करने के लिए शुद्ध तन और मन से त्रयोदश अध्याय का पाठ करें।

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