स्वास्थ्य कोना
स्वस्थ्य जीवन के लिए स्वच्छ
वातावरण
बच्चों को
देष का भविश्य कहा जाता है लेकिन अगर यही बच्चे कुपोशित और अस्वस्थ होंगे तो देष
का विकास कैसे संभव है। खासकर देष के ग्रामीण क्षेत्रों में नवजात बच्चों को वह
पोशक आहार व विटामिन नहीं मिल पाते हैं जो उनके षारीरिक व मानसिक विकास के लिए
बेहद महत्वपूर्ण हैं। गरीबी में रहने के कारण यहां बराबर गन्दगी और छूआछूत की
बीमारी का खतरा बना रहता है। बच्चों के लिए ही नही बरन सभी के स्वस्थ्य जीवन के
लिए स्वच्छ वातावरण के साथ पोशक आहार अनिवार्य है।
सरकारी
स्तर पर ग्रामीण अंचलों में नवजात षिषुओं के सम्पूर्ण विकास के लिए की गयी पहल
काफी सराहनीय है जिसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेष के
स्वास्थ्य तथा बाल विकास सेवा एवं पुश्टाहार निदेषालय (आईसीडीएस) द्वारा संयुक्त
रूप से बाल स्वास्थ्य पोशण कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसके अन्तर्गत 5 वर्श तक के बच्चों के
स्वास्थ्य तथा पोशण स्तर सुधारने के लिए आईसीडीएस द्वारा कुछ चयनित गतिविधियां
यूनीसेफ के सहयोग से आयोजित की जा रही हैं। बाल स्वास्थ्य पोषण के अंतर्गत बच्चों
को विटामिन ए की खुराक दी जाती है। इसके अभाव में बच्चों को अंधेपन का खतरा हो
जाता है। कुपोशण का षिकार बच्चे और उनकी माताओं तथा गर्भवती महिलाओं को पोशण और
स्वच्छता तथा बच्चों के लालन-पालन के बारे में भी बताया जाता है। लेकिन सबसे बड़ी
चुनौती लोगों का बच्चों के स्वास्थ्य सम्बन्धित सरकारी कार्यक्रमों में विष्वास
जगाना है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नियमित रूप से होने वाले
टीकाकरण, पोलियो
खुराक पिलाने व अन्य स्वास्थ्य गतिविधियों में सुचारू रूप से भागीदारी कर गांव की
महिलाओं को जागरुक करने का कार्य करतीं हैं। स्वास्थ्य के इस सामाजिक आन्दोलनों का
एक और भी बहुत अच्छा पहलू है। अब छोटे बच्चे स्वयंसेवकों की टोली बनाकर घर-घर जाते
हैं और घर की महिलाओं को आॅंगनबाड़ी जाने के लिए प्रेरित करते हैं। इन बच्चों की
टोलियों को बुलावा टोली कहा जाता है और कभी-कभी इन पर प्रचार भी प्रयोग किया जाता
है। लेकिन कभी-2 इन कार्यक्रमों की सफलता में कुछ अजीब से
रोड़े अटक जाते हैं। जैसे बाल स्वास्थ्य पोशण महीना जब मनाया जा रहा था तब विटामिन
ए की कमी हो गई। पहले यूनिसेफ सारे प्रोग्राम के लिए मुफ्त में दवाई देता था पर इस
वर्श यू.पी. सरकार ने कहा कि विटामिन ए की सप्लाई वह करेगी लेकिन विटामिन ए समय पर
नहीं पहुंच पाया। इसी तरह से बच्चों के लिए स्वास्थ्य भोजन और गर्भवती तथा छोटे
बच्चों की मातों के लिए खान-पान की सामग्री भी नहीं पहुंच पायी। कुछ सामान तो बहुत
घटिया स्तर का था और कुछ सामान सही तरह से स्टोर न किये जाने के कारण खराब हो गया।
तमाम स्वास्थ्य केंद्रों में पानी की सुविधा भी नहीं है और बिजली अक्सर नहीं आती।
इसी आपातकालीन स्थिति के लिए मेडिकल किटस भी अक्सर नहीं मिलती। आवष्यकता इस बात की
है कि इन सब कमियों को सुधारा जाय और तभी भारत में छोटे बच्चों की मृत्युदर कम
होगी लेकिन फिर भी स्वयं सेविकाएं हमारे लिए आषा की एक किरण हैं।
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