स्वस्थ्य- मोटे बच्चों पर न कसे तंज

स्वस्थ्य
                        मोटे बच्चों पर न कसे तंज
                                                             
बहुत से लोगों की यह आशा है कि बालक या बालिका का मोटा होना अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है। यह धारणा नितान्त असत्य है। बच्चों का अधिक मोटा होना या वजन बढ़ा लेना एक शारीरिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक समस्या है। वह बालक किशोरावस्था में मोटा हो जायेगा और वयस्क होने पर बहुत अनावश्यक चर्बी बढ़ जायेगी और उसके लिये सामान्य कामकाज करना भी कठिन हो जायेगा।
बच्चे का वजन अधिक बढ़ जाने तथा अनावश्यक मोटा हो जाने से न केवल उस पर एक बोझ हो जाता है वरन उसके भावी स्वास्थ्य पर भी इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मोटे बालक को उसके साथी व सहपाठी मोटे राम’, ‘मोटे’, ‘मुटऊआदि अनेक उपनामों से पुकारते हैं। वयस्क भी कभी कभी उस पर ऐसे व्यंग कस देते हैं कि बालक की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। मोटे अल्पवयस्क बालक को ये व्यंग अधिक चुभते हैं। मोटी बालिका और भी अधिक भावुक होती है। उसको इस प्रकार के शब्दों से और भी अधिक चोट पहुंच सकती है क्योंकि उसके मन में एक सुखद भविष्य का स्वप्न होता है। मोटी व्यस्क युवती देखती है कि अपनी पतली सहपाठिनों के मुकाबले वह कम पसंद की जाती है और पुरुष मित्र उसे घूमने ले जाना पसंद नहीं करते। इसके कारण वह हर समय उदास तथा दुखी रहती है। उसको अनेक अप्रिय उपनामों से पुकारा जाता है। वह आत्म वेदना से पीडि़़त रहती है।
मोटे बालक की समस्या धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण कर लेती है। मोटा बालक यह समझने लगता है कि वह समाज का अवांछनीय व्यक्ति है। लोग उसको देखकर हंसते हैं परंतु उसका स्वाभिमान उसे सहन नहीं करता। मोटे बालकों व बालिकाओं की इस समस्या को हल करने के लिए माता पिता को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर वे चाहें तो उसका मोटापा घटा सकते हैं। बहुत से बालक मोटा होने के अपमान को यह कह कर छिपाने का प्रयास करते हैं कि ‘‘मैं परवाह नहीं करता’’ हो सकता है आपका बालक अधिक संवेदनशील हो और वह इससे अत्यंत दुखी व उदास रहता हो। माता-पिता को चाहिए कि बालक को सांत्वना दें और उसका मोटापा घटाने के लिए कदम उठायें। सर्वप्रथम कार्य यह है कि किसी डाक्टर से जांच करवा कर बच्चे का वजन ज्ञात करें और यह पता लगायें कि उसमें कितना अनावश्यक वजन है। डाक्टर की सलाह के अनुसार उसके भोजन में परिवर्तन कर दें। शरीर का गठन तीन प्रकार का होता हैं। कुछ लोग लम्बे होते हैं परंतु उनका शरीर दुबला होता है, कुछ लोग लंबे होने के साथ हष्ट पुष्ट मांसपेशियों वाले होते हैं, अन्य कुछ मध्यम कद के तथा विकसित शरीर के होते हैं। अधिकंाश व्यक्ति मिश्रित कोटि में आते हैं। परंतु किसी भी मनुष्य का वजन उसके भोजन पर निर्भर करता हैं। मनुष्य जो भोजन करता है उससे प्राप्त शक्ति में से खर्च करने के बाद जो बच जाती हैं वह उसका वजन बढ़ाती हैं। शक्ति का व्यय शरीर के श्रम से ही नहीं वरन बौद्धिक श्रम तथा चिन्ताओं के कारण भी हो जाता हैं।
एक बाल ऐसा भी हो सकता है जो खाता बहुत हो परंतु एक ग्राम भी वजन न बढ़े और वह केवल हड्डियों का ढांचा मात्र हो। अगर वह हर समय चिन्ता में डूबा रहता है तो उसकी समस्त षक्ति इस में नश्ट हो जायगी। दूसरा बालक थोड़ा सा भोजन करके भी दिन प्रति दिन मोटा होता जाताा हैं। इस का कारण यह हो सकता है उसे किसी प्रकार का षारीरिक या मानसिक श्रम नहीं करना पड़ता न कोई चिन्ता हैं। उसके भोजन से प्राप्त चर्बी उसके शरीर में एकत्र होती जायगी। ऐसे बालकों को भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। डाक्टर यही सलाह देंगे कि बालक को शरीर के विकास के लिए पौष्टिक व शक्तिदायी भोजन की आवश्यकता होती हैं। अतः वे आपको ऐसा भोजन नहीं बतायेंगे जिससे बालक का वजन बहुत अधिक घट जाय। 4 या 5 पौंड में अधिक एक माह में नहीं घटना चाहिए। विकासशील बालक के लिए वजन घटना हितकर नहीं माना जाता।
बालक का मोटापा घटाने के लिए आप उसके आह्म को जो नई तालिका बनायें उसमें दूध या अंडा या दोनों फल व सब्जी अवश्य होनी चाहिए। ये शरीर के विकास के लिए आवश्यक हैं। भोजन की पूर्ति के लिए कुछ विटामिन भी शामिल किये जा सकते हैं। अल्पाहार में फल व शर्बत रहें। अंडे उबले हुए या फ्राई होने चाहिए। चिकनाई वाली वस्तुओं तथा चीनी से परहेज करंें। बालक को प्रतिदिन कुछ न कुछ व्यायाम करना चाहिए जिससे उसकी शक्ति की व्यय होगी और मांस पेशियां भी मजबूत होंगी। परंतु व्यायाम शरीर के अनुसार हो। बहुत अधिक न हो। अगर बच्चा किशोरावस्था में मोटा है तो यह न समझिये कि लंबा हो जाने पर मोटापा शरीर के अनुकूल हो जायेगा। लंबाई के अनुसार ही मोटापन भी बढ़ना चाहिए। बच्चे को अधिक खाने के लिए कभी विवश न कीजिए। भोजन करने में वह बाल्यकाल में आनन्द प्राप्त कर कसता है परंतु किशोर व व्यस्क होने पर भोजन करना उसका शौक नहीं बनना चाहिए। अगर किसी बालक को हर समय खाते रहने की आदत है और दिनभर कुछ न कुछ खाते रहता है तो समझ लीजिए कि वह दुखी है और उसमें आत्म-विश्वास जाग्रत करेंगे उतना ही वह अधिक खाने की आदत का त्याग कर देगा। हर समय खाते रहना उसका शौक नहीं रह जायगा। उसके भोजन को नियंत्रित कर दीजिए और उसे वही भोजन दीजिए जो उसके शरीर के लिए आवश्यक हैं। उसका अनावश्यक मोटापा घट जायेगा।

भोजन की मेज पर स्वादिष्ट व चिकनाई वाला भोज्य मत रखिए। मूली गाजर व सलाद पर अधिक जोर दीजिए। घी व चीनी की बनी वस्तुऐं कम से कम हों। मोटे बालक उदास होने पर अधिक भोजन करते हैं। अतः उनके मनोरंजन की सामग्री भी उपलब्ध कराइये ताकि वह उदास न रहे। धीरे धीरे उसका मोटापा घट जाने पर न केवल उसके स्वास्थ्य में सुधार हो जायगा वरन अपने सहपाठियों के मध्य भी अधिक सुखी हो जायेगा। कोई भी उसके मोटाकहकर चिढ़ा नहीं सकेगा।

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