मुनाफाखोरी के पयार्य बनते निजी स्कूल

मुनाफाखोरी के पयार्य बनते निजी स्कूल

मुझे याद हे कि जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो उस समय हमारी फीस न केवल नाममात्र ही होती थी बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए शिक्षक व स्कूल प्रबंधन हमेशा तैयार रहते थे। लेकिन अब जबकि मेरी अपनी दो पोतियां दिल्ली के एक निजी स्कूल में पढ़ती हैं तो वहां उनसे न केवल मोटी फीस ली जाती है बल्कि इन छोटी क्लासों में इन्हें ऐसे-ऐसे काम दे दिए जाते है जिन्हें अकसर मां-बाप ही पूरा करके भेजते है।

सरकारी स्कूलों की आवश्यकता की वजह से जहां लोगों का मोह भंग हुआ है वहीं पर उसी का फायदा उठाकर कुकरमुत्ते की तरह उग आए देश के कई निजी स्कूलों ने भी शिक्षा को एक दुकानदारी बनाकर मनमानी केपीटेशन फीस ही वसूलते हैं, बल्कि बच्चों को उनकी डेªस, शॉप से खरीदने पर विवश करते हैं जिस पर एक सामान्य अभिभावक का काफी पैसा खर्च होता है, लकिन वह मजबूरी में इन्हें खरीदता है और अपने गुस्से के आंसू भी पी जाता है। 

हमारे जमाने में ऐसी कोई बंदिश नहीं थी कि स्कूल की ड्रेस या कापी-किताबें स्कूल से ही खरीदी जाएंगी। लेकिन अब तो कई नामी-गिरामी स्कूलों ने फीस बढ़ोतरी के साथ अपनी मुनाफाखोरी के जो अन्य साधन अपना लिए हें वे किसी गदर से कम नहीं है। स्कूली छात्रों और उनके अभिभावकों की इस परेशानी को देखकर आज यदि अदालतें अपने निर्देशों में यह कहती है कि, शिक्षा के नाम पर निजी शिक्षा संस्थान चलाने को एक ‘पेशा’ तो कहा जा सकता है लेकिन उसे मुनाफाखोरी की दुकाने बनाना या व्यापार बना लेना गलत हैं, और इसमें सरकार को यह हक हे कि वह यह सुनिश्चित करें कि कोई भी निजी संस्थान मुनाफाखोरी न करें और न ही कोई कैपिटेशन फीस आदि ले। तो इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। आजादी से पहले और आजादी के कुछ वर्षो बाद तक शिक्षा के जितने भी निजी संस्थान खोले गए थे वे समाज की भलाई और बच्चों को साक्षर बनाने के उद्देश्य से खोले गए थे, मुनाफा कमाना उनका मकसद नहीं था। लेकिन देश में निजीकरण बाढ़ आने के बाद बडे-बडे़ पूंजीपतियों और नेताओं ने भी ऐसे स्कूल खडे़ कर लिए जहां का सारा खर्च बच्चों व उनके अभिभावकों से ही वसूल जाता है।

दिल्ली में स्कूली छात्रों से मोटी फीसे वसूलने का कुचक्र कई वर्षो से जारी है। अब इसमें राहत की बात यह है कि पूर्व न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह की अध्यक्षता वाली समिति ने हाई कोर्ट में ऐसे कई स्कूलों की रिपोर्ट पेश कर दी है जिन्हें मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने का दोषी पाया गया है। हाईकोर्ट के आदेशों पर निजी स्कूलों के बही-खातों की जांच में जुटी इस समिति ने दोषी पाए गए तमाम स्कूलों को अभिभावकों से वसूली गई बढ़ी फीस भी 9 प्रतिशत ब्याज सहित वापिस लौटाने को कहा है।

यह समिति अब तक दिल्ली के 1102 स्कूलों के खातों की जांच कर चुकी है और इसमें 535 स्कूल दोषी ठहराए जा चुके हैं जिन्हें करीब 300 करोड़ रूपये वापस करने होंगे। अभी तक ये स्कूल फीस बढ़ोतरी के मामले में न अभिभावकों की सुनते थे और न ही किसी नीति या रोक को मानते थे। बल्कि छात्रों को दाखिला देने में भी मोटी रकमें लेने को ये अपना अधिकार बनाए हुए थे। इससे पता चलता है कि कई पैसे वालों और नेताओं के संरक्षण में चल रहे ये निजी स्कूल न केवल मनमाने ढंग से अभिभावकों की जेबें साफ करते है बल्कि शिक्षा के नाम पर अपनी चमचमाती इमारते भी खड़ी कर रहे है। अदालत ने पहले भी कहा था कि दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम 1973 के तहत स्कूलों द्वारा फीस बढ़ोतरी व मुनाफाखोरी करने पर शिक्षा निदेशालय को इसमें हस्तक्षेप करने का पूरा हक है। लेकिन कई स्कूलों ने अदालती फेसलों को नजरअंदाज करते हुए अनाप-शनाप तरीके से फीस वसूलना व मुनाफा कमाने का सिलसिला जारी रखा। तब सरकार की निष्क्रियता से इन स्कूल वालों का भी हौसला बढ़ता चला गया। लेकिन अब न्यायमूर्ति बी.डी. अहमद की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष जांच समिति ने अपनी जो 10वीं रिपोर्ट पेश की हे उसमें अनुचित फीस वसूलने के दोषी पाए गए स्कूलों में डी.ए.वी. समूह के 18 स्कूल हैं। जबकि मार्डन स्कूल ‘ाालीमार बाग, केंब्रिज स्कूल श्रीनिवासपुरी, भारतीय विद्याभवन कस्तूरबा गांधी मार्ग, पिन्नेकल स्कूल पंचशील, ग्रीनवे मार्डन सीनियर सेकन्डरी स्कूल दिलशाद गार्डन के अलावा लक्ष्मण पब्लिक स्कूल हौजखास ‘ाामिल है। समिति ने लक्ष्मणदास स्कूल द्वारा दाखिला लेने वाले बच्चों से प्रशासनिय शुल्क के रूप में वसूले गए 5000 रूपये को भी गैर कानूनी बताया है। इससे पता चलता है कि दाखिले की प्रक्रिया में पूरी करने में कर्मचारियों की मेहनत और कागज-कलम के खर्च के रूप में अतिरिक्त वसूली का धंधा भी कुछ स्कूल प्रबधंन को 36 लाख 68 हजार रूपये 9 फीसदी ब्याज के साथ अभिभावकों को लौटाने को कहा है। अभी तक 400 स्कूलों को 300 करोड़ रूपये वापस करने हैं लेकिन अब उन्हें भी कुछ नहीं सूझ पा रहा है। वैसे कुछ स्कूलों ने अभिभावकों को बढ़ी हुई फीसे ब्याज सहित वापस लौटाई भी हैं लेकिन कई स्कूलों के बही-खातों की जांच होना अभी बाकी है। 

दिल्ली में केजरीवाल सरकार की सख्ती की वजह से महज चार दिन में 15 स्कूलों द्वारा अपनी फीस घटाया जाना अभिभावकों के लिए एक बड़ी राहत है। जो स्कूल हर साल मनमाने तरीके से 10 से 25 फीसदी तक अपनी फीसे बढ़ाते रहे हैं अब सरकार की सख्ती से उन्हें भी लगने लगा है कि यदि उन्होंने बढ़ी फीसे वापिस नहीं की तो सरकार उनके स्कूल को भी उसी तरह टेक ओवर कर सकती है जैसे कथूरिया पब्लिक स्कूल को टेक ओवर किया जा चुका है और मैक्सफोर्ट स्कूल को भी टेकओवर का नोटिस दिया जा चुका है जो अपने स्कूल का फंड रिकार्ड नही दे पाया।

यह सरकारी सख्ती का ही नतीजा है कि अब डी.पी.एस. समूह स्कूलों की ब्रांचों ने तथा कई अन्य नामी गिरामी स्कूलों ने अपनी फीसें घटा दी हैं। लेकिन इस में ज्यादा श्रेय उन अभिभावकों को ही जाता है जिन्होंने पूरे तथ्यों और दस्तावेजों के साथ डीपीएस, मैक्सफोर्ट, कालका पब्लिक, सलवान पब्लिक स्कूलों जैसे कई नामी-गिरामी स्कूलों का कच्चा चिठ्ठा अदालत व सरकार के सामने रखा। अभी तक अभिभावक स्कूलों की बढ़ी फीस के बोझ को अपनी विवशता समझते थे लेकिन सरकारी सख्ती ने उनके हौंसले बढ़ा दिये है। ऐसे में कई अभिभावकों का कहना है कि हमारी कमाई का एक चैथाई हिस्सा तो अपने बच्चों की पढ़ाई पर खर्च हो जाता है। फिर निजी स्कूलों में वह गुणवत्ता भी नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। अब तो कभी बिल्डिंग फंड के नाम पर तो कभी कल्चरल ‘ाो के नाम पर पैसा वसूलने के ऐसे ऐसे तमाशे किए जाने लगे हैं जो अभिभावकों की जेब काटते नज़र आते हैं 

एक अभिभावक ने बताया कि मेरे दो बच्चों को स्कूली कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए चुना गया। लेकिन मुझे उसकी स्कूल डेªस स्कूल द्वारा बताई गई उसी दुकान से खरीदनी पड़ी जिसका किराया पांच सौ रूपये प्रतिदिन था जबकि वही डेªस अपनी खरीदें तो उस पर तीन सौ रूपये का खर्च आता है। मैनें जब उस दुकानदार से पूछा कि तुम्हारा किराया इतना ज्यादा क्यों हैं तो उसने बड़ी बेशर्मी से कहा कि हमंे इसमे कुछ हिस्सा स्कूल प्रबंधन को भी तो देना पड़ता है। यह लूटतंत्र नहीं तो और क्या है। इन निजी स्कूलों में कई टीचर्स बच्चों को ऐसे-ऐसे प्रौजेक्ट बनाकर लाने को कहती हैं जिन्हें खरीदने व बनाने में अभिभावकों के भी पसीने छूट जाते हैं, और वही प्रोजेक्ट बाद में स्कूल परिसर की प्रदर्शनी में दूसरे अभिभावकों को बेचकर पैसा कमाना इनका ‘ागुल बन गया हैं। इस पर भी अंकुश लगाना चाहिए।

इसी तरह एक अन्य अभिभावक ने बताया कि बढ़ी फीस के साथ पहले फोटो ब्लैक एंड व्हाइट होती थी लेकिन जिंदगी रंगीन थी। अब फोटू रंगीन है तो जिंदगी रंगहीन हो गई है। हम अपने बच्चों की बस का किराया पूरा अदा करते है। लेकिन बस वाला दो सैकंड की प्रतीक्षा नहीं करता और हमें मजबूरन आटो करके बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना पड़ता है। यदि स्कूल प्रबंधन से शिकायत करें तो वह भी इस समस्या से अपना पल्ला झाड़ता दिखलाई देता हैं जबकि बच्चों को स्कूल लाना-ले जाना उसी की जिम्मेदारी हैं, जिसके वह हमसे पैसे लेता है।

निजी स्कूलों की मनमानियों व धांधलियों पर तभी रोक लग सकती है जब सम्बन्धित अभिभावक इकठ्ठे होकर उनका प्रतिकार करें और आवाज़ को सरकार व अदालत तक पहुंचाए। कौन नहीं जानता कि आज कई स्कूल सरकार को गलत सूचनाएं देकर न केवल उसे गुमराह करते हैं बल्कि फर्जी आंकडेे देकर धोखाधड़ी भी करते हैं। कुछ स्कूल तो ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत निर्धारित 20 फीसदी कोटे में भी वांछित बच्चों को एडमीशन नहीं देते, ऐसे बच्चों को मुफत की कापी-किताबे और यूनीफार्म कौन दे पायेगा? जो स्कूल मनमाने तरीके से प्रकाशकों से महंगी से महंगी किताबे खरीदने या बेमतलब की पत्रिकाएं खरीदने के लिए बच्चों को बाध्य करते हैं वे वस्तुतः उच्च न्यायालय के आदेशों तथा शिक्षा के अधिकार के अधिनियम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ ही करते हैं। ऐसे स्कूलों पर अब यदि सरकार सख्ती बरतती नजर आती है तो इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। बल्कि मैं तो यह भी कहूंगा कि सरकारी जमीनों पर चल रहे सभी निजी स्कूलों के खातों की जांच भी कैग से जुडे़ चार्टेड एकाउटेटंस से ही कराई जानी चाहिए। ताकि जो स्कूल विभिन्न धांधलियों में लिप्त है उनपर शिंकजा कसा जा सके। वैसे भी बढ़ी फीसों से भले ही अमीर लोगों को कोई फर्क न पड़ता हो, लेकिन जो लोग जैसे तैसे मेहनत-मजदूरी करके अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, उन पर भारी भरकम फीसों का बोझ लादना किसी भी तरह से जायज़ नहीं है। 

सस्ती व सुलभ शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। लेकिन जिन स्कूलों ने फीस बढ़ौतरी व बिल्डिंग फंउ आदि के नाम पर अपने स्कूलों को पंचतारा होटलों के जैसा बना लिया है और अपनी बसों के बेडे को भी इस तिजारत में लगा रखा है, उन्हें पारदर्शी होने का सबक सिखाना जरूरी हैं। और यह काम तभी हो सकता है जब स्वंय अभिभावक, सरकार और अदालते एकजुट होकर निजी स्कूलों में मची धांधलेबाजियों को न केवल बेनकाब करें, ताकि ऐसे स्कूलों को टेक ओवर करने के उपायों को भी अमल में लाएं व संविधान में दिए गए शिक्षा के अधिकार की आत्मा बची रह सके। 
- जगदीश चावला 

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