मुस्लिमों को मुख्यधारा में जोड़ने की जरूरत

मुस्लिमों को मुख्यधारा में जोड़ने की जरूरत
                                                      
   कथित धर्मनिरपेक्ष दल मुसलमानों की भावनाओं को लगातार नज़रअंदाज करके उन्हें कठमुल्लाओं और वोट के दलालों के हवाले करके उन्हें बंधुआ मजदूरों की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। इन धर्मनिरपेक्ष दलों की मौखिक तुश्टिकरण की रणनीति से मुसलमानों को कुछ फायदा नहीं हुआ उल्टे दक्षिणपंथियों को संजीवनी मिली है। मुसलमानों की बैचेनी का फायदा अलकायदा और आई.एस.आई. जैसे आतंकी संगठन कहीं उठा न ले इसलिये भारत सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा। नये कानून बनाकर अल्पसंख्यकों को न्याय देना होगा जिससे उनका विष्वास और भरोसा व्यवस्था में बना रहे।
       आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक ग्राफ के नीचे आने से पैदा हुई मायूसी पर जेहादी आंतकवाद के तड़के ने मुस्लिमों को अलगाववाद की तरफ धकेलना षुरू कर दिया है और धीरे-धीरे मुसलमान मुख्यधारा से दूर होते जा रहे हैं। संघ परिवार के तुश्टिकरण वाले व्यंग्य बाणों के बावजूद जस्टिस रंगनाथन मिश्रा और सच्चर रिपोर्ट से स्पश्ट हो गया है कि भारतीय मुसलमानों के हालात दलितों से भी ज्यादा खराब हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते मुस्लिम एक यंत्र बन गये हैं। जिसे इस्तेमाल करने के बाद स्टोर में फेक दिया जाता है, जब तक कि उसकी दोबारा जरूरत न पड़े।
   कथित धर्मनिरपेक्ष दलों द्वारा मुसलमानों की भावनाओं को लगातार नज़रअंदाज करके उन्हें कठमुल्लाओं और वोट के दलालों के हवाले करके उन्हें बंधुआ मजदूरों की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। कभी यह जानने की कोषिष नहीं की कि आम मुसलमान क्या चाहता है। इन धर्मनिरपेक्ष दलों की मौखिक तुश्टिकरण की रणनीति से मुसलमानों को कुछ फायदा नहीं हुआ उल्टे दक्षिणपंथियों को संजीवनी मिली है। मजदूर, किसान और गरीब की लड़ाई लड़ने वाले और जीवन समाज के लिये समर्पित करने वाले वाम दलों के साढ़े तीन दषक के षासनकाल में पष्चिमी बंगाल की सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की प्रतिनिधित्व महज़ 4 प्रतिषत था जबकि उस वक्त उनकी आबादी 24 प्रतिषत से ज्यादा थी।
   अख़लाक के हत्यारों के लिये नरम रूख अख्तियार करने वाली और मुजफ्फरनगर दंगे के बलात्कारियों को आजतक गिरफ्तार न करने वाली उत्तर प्रदेष में समाजवादी पार्टी की सरकार के भीश्म पितामह और लोहियावादी मुलायम सिंह कभी साक्षी महाराज और कल्याण सिंह के दोस्त रह चुके हैं। कठेरिया को जेल भेजने की बात करने वाली और बाबा साहब अम्बेडकर की उत्तराधिकारी मायावती ने अपने षासनकाल में पष्चिमी उत्तर प्रदेष की मस्जिदों में बम फेंकने वाले नरेन्द्र गिरी और उसकी आर्य सेना को बचाया था। नीतीष कुमार, रामविलास पासवान, षरद पवार, नायडू, पटनायक, ममता और जयललिता जैसे अवसरवादी कब धर्मनिरपेक्ष से दक्षिणपंथी बन जाये इसका कयास लगाना असंभव है।
  टाडा की निर्माता, फर्जी एन्काउन्टर की जन्मदाता और सैकड़ों बेकसूर मुस्लिम नौजवानों को आतंकवादी बताने वाली पार्टी कांग्रेस नान्देड़ से कानपुर तक चार जगहों पर बम बनाते समय मारे गये हिन्दुवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की गतिविधियों पर ष्वेत पत्र लाने के बजाय मौन रही। इसलिये मुसलमानों का विष्वास धर्मनिरपेक्ष नेताओं से उठ गया है और इसका फायदा ओवैसी जैसे चरमपंथियों को मिल रहा है जोकि देष और मुसलमानों दोनों के लिये घातक होगा। बम धमाकों के चन्द मिनटों के बाद ही मुसलमान आतंकवादियों के नाम से कहानिया चलाने वाले टी.वी. चैनल के एंकर और जेहादियों के षौचालयों में झाककर पत्रकारिता करने वाले समाचारपत्रों के रिर्पोटर, आज तक बंगलौर में ‘‘आर्ट आॅफ लिविंग’’ के कैम्प के बहाने आतंकवाद का प्रषिक्षण पाने वाले कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर के सौ से ज्यादा साथियों के नाम पता नहीं लगा सके हैं।
  प्रताड़ना के षिकार भारतीय मुसलमानों का व्यवस्था से विष्वास उठ रहा है, उनका मत है कि सामाजिक न्याय तो बहुत दूर की बात है उन्हें तो अब तक वैधानिक न्याय भी नहीं मिला है। उनके तर्क हैं कि गोधरा में बहुसंख्यक समुदाय के 59 लोग मारे गये थे जिसके लिये अदालत ने 11 मुसलमानों को फांसी की सज़ा दी है जबकि नरोदा पाटिया में 97 मुसलमान मारे गये लेकिन एक भी हिन्दु को फांसी की सज़ा नहीं दी गई है। चार दषक में लगभग 30,000 मुसलमान, 3,000 सिक्ख और सैकड़ों ईसाई जिनमें आस्ट्रेलियन मिषनरी ग्राह्य स्टेन और उनके दो छोटे बच्चे षामिल हैं, अब तक मारे जा चुके हैं लेकिन किसी भी हिन्दु को इन हत्याओं के लिये फांसी नहीं दी गई है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों को आनन-फानन में फांसी दे दी गई लेकिन राजीव गांधी के हत्यारों को मानवता का बहाना बनाकर छोड़ दिया गया। गुजरात नरसंहार के समय हुई पुलिस फायरिंग में मारे गये 184 लोगों में से 104 यानी 57 प्रतिषत मुस्लिम ही थे। इससे साफ संदेष मिलता है कि पुलिस मुसलमानों का नरसंहार रोकने के बजाये दंगाइयों के हाथ मज़बूत कर रही थी। मुरादाबाद की ईदगाह से लेकर मेरठ के हाषिमपुरा तक मुसलमानों को कत्ल करने वाले पुलिस वाले अदालत से बरी हो जाते हैं।
एड्स की बीमारी से पीडि़त तेलगी के नारको टेस्ट की इजाज़त और बटला हाउस एन्काउन्टर में सिर्फ पुलिस की ही गवाही को आधार मान लेने जैसे ऐतिहासिक अदालती फैसले संयोग से मुस्लिमानों के विरूद्व ही आते हैं। जबकि दारा सिंह और बाबू बजरंगी को अदालत के नरम रवैये का फायदा मिल जाता है। इन घटनाक्रमों से मुसलमानों को लगता है कि व्यवस्था इस तरह बना दी गई है कि अल्पसंख्यकों के बलात्कारी और हत्यारे अदालत से बरी हो जाये या कम से कम सज़ा मिले और अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा सज़ा मिले। इसलिये वह इसे राश्ट्र द्वारा प्रायोजित आतंकवाद मानने लगे हैं। अफज़ल की कितनी अपीलों को सुना गया या रात के तीन बजे याकूब मेमन के लिये अदालत खोली गई, विरोधियों के इन तर्कों से मुसलमान सहमत नहीं है क्योंकि उनका मतलब सिर्फ परिणाम से है। अभी अदालत का फैसला आया भी नहीं है लेकिन मुसलमान यह मान बैठे हैं कि असीमानन्द और उनके साथियों को भी फांसी नहीं होगी। मुसलमानों की बैचेनी का फायदा अलकायदा और आई.एस.आई. जैसे आतंकी संगठन कहीं उठा न ले इसलिये भारत सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा। नये कानून बनाकर अल्पसंख्यकों को न्याय देना होगा जिससे उनका विष्वास और भरोसा व्यवस्था में बना रहे और राश्ट्रीय एकता बनी रहे। सार्वजनिक स्थानों पर अल्पसंख्यकों को कहे गये अपषब्द दंगों की पृश्ठभूमि बनाते हैं। बहुसंख्यक उन्हें नौकरी, किराये पर घर और मकान सौंपने में भेदभाव करते हैं इसलिये हरिजन एक्ट की तजऱ् पर साम्प्रदायिक छुआछूत विरोधी कानून का निर्माण करना चाहिये। साम्प्रदायिक दंगे भारत की एकता और अखण्डता के लिये सबसे बड़ा खतरा है इसलिये दंगों को देषद्रोह का दजऱ्ा देकर अल्पसंख्यकों के जान-माल की रक्षा करने के लिये संम्प्रदायिक दंगा विरोधी कानून बनाना चाहिये। आरक्षण मुसलमानों की सबसे बड़ी मांग और ज़रूरत है। लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण देना असम्भव है। इसलिये समान अवसर कानून बनाकर मुसलमानों के आर्थिक और षैक्षिक स्तर को ऊपर लाना चाहिए। अल्पसंख्यकों के हत्यारे और लुटेरे कानून की उदारता और प्रषासन की लचरता का फायदा उठाकर बचने ना पाये इसलिये साम्प्रदायिक न्यायिक जवाबदेही कानून बनाना चाहिए। कैग जैसा संस्थान न्यायधीषों के निणर्यों पर रिपोर्ट तैयार करें जिससे भविश्य में न्यायधीषों को मार्गदर्षन मिले। अल्पसंख्यकों को आत्मरक्षा और पुलिस द्वारा असंवैधानिक हत्याओं पर रोक लगाने के लिये पुलिस नियन्त्रण कानून बनाना चाहिए ताकि दोशी पुलिसवालों को सख्त़ सज़ा मिल सके।

मुस्लिम विरोधियों का मत होगा कि जब पहले से ही इतने कठोर कानून है तब भी अपराध होते हैं। ऐसे में नये कानून बनाने से ज्यादा फायदा नहीं होगा। कानून पहले से ही मौजूद है लेकिन जो व्यक्ति कानून लागू करने के लिये जिम्मेदार है वहीं भेदभाव करता है, यह कानून उस व्यक्ति को भेदभाव करने से रोकने के लिये है ताकि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति भेदभाव ना कर सके। भेदभाव रोकने में सिविल सोसायटी का महतवपूर्ण किरदार होता है इसलिये उन्हें ताकतवर बनाना चाहिए। तीस्ता षीतलवाड़ जैसे कार्यकर्ताओं का सामाजिक और राजनैतिक प्रताड़ना से बचाने के लिये सामाजिक कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर मानवाधिकारों और संविधान की रक्षा करना चाहिए। निश्पक्ष प्रषासन और न्याय ही मुसलमानों को अलगाववाद से दूर रखकर मुख्यधारा से जोड़े रख सकता है।

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