जीवन को समझें

जीवन को समझें

जीवन प्रबंधन एक ऐसा विषय है, जिसे सीखने की जरूरत हर किसी को है। यदि इस विषय को समझने में कोई हिचकता है या आनाकानी करता है, तो भी जीवन में आने वाली परिस्थितियां उसे यह विषय सीखने के लिए मजबूर कर देती हैं। जिन्दगी का हर पल हमें कुछ सिखाकर जाता है। लेकिन यदि व्यक्ति बिल्कुल भी होश में नहीं है तो वह इसका लाभ नहीं ले सकता, अन्यथा जीवन में मिलने वाली असफलाएं, परेशानियां, चुनौतियां, अपमान, शारीरिक व मानसिक कष्ट यह बताते हैं कि जिन्दगी जीने में कहीं कोई भूल हुई है जिसका परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है। यदि आज भी इसके जीने के तौर-तरीके नहीं सीखे गए और इन भूलों को दोहराते रह गए तो आने वाला भविष्य अंधकारमय-कष्टमय हो सकता है। निश्चित तौर पर जीवन को संभालने के लिए जीवन को गहराई से समझना जरूरी है। इसके सिद्धांतों को जानना जरूरी है और अपनी क्षमताओं को पहचानना तथा उनका सही नियोजन करना भी उतना ही जरूरी है।

व्यक्ति अपने पूरे जीवन मे खुशियां तलाशता है, फिर भी उसे वह तृप्ति नहीं मिल पाती, जिसकी वह तलाश करता है। वह सुकून उसको नहीं मिल पाता, जो उसे आत्मसंतुष्टि दे सके, सार्थकता का अनुभव करा सके। इसके लिए व्यक्ति को अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को तलाशना होगा। जो चाहतें व्यक्ति पूरी करने में लगा है, उनके पूरा हो जाने पर क्या वह संतुष्ट हो जाएगा या फिर उसकी अतृप्ति बढ़ जाएगी? ऐसा क्या है, जिसकी उसे परम आवश्यकता है, जिसके मिल जाने से उसकी अतृप्ति समाप्त हो सकती है? इस प्रश्न को बार-बार सोचना होगा और सही उत्तर की प्रतीक्षा करनी होगी।
हमारा जीवन जिन शक्तियों से संचालित है, उनका हम सदुपयोग भी कर सकते हैं और दुरुपयोग भी। यह कार्य करने के लिए हम स्वतंत्र हैं, लेकिन हम जिस तरह का कार्य करेंगे, उसका फल भोगने के लिए परतंत्र हैं। वह पर हमारी स्वतंत्रता समाप्त होती है और महाकाल की स्वतंत्रता आरंभ हो जाती है। इसलिए इस तथ्य को भली प्रकार समझकर हमें कर्म करना चािहए। जिस तरह के परिणाम की हम आशा करते हैं, उसके अनुरूप कर्म करने का प्रयास करना चािहए। यदि हमारे कर्म की क्षमता ज्यादा है तो परिणाम आशा से भी अच्छे मिल सकते हैं और यदि कर्म की क्षमता कम है तो परिणाम आशा के विपरीत मिल सकते हैं, लेकिन सदैव वर्तमान कर्म के आधार पर अपने भविष्य में मिलने वाले परिणामों को आकलन करना उचित नहीं; क्योंकि मिलने वाले परिणाम हमारे कई शुभ व अशुभ कर्मों के फल हो सकते हैं।
हमारे जीवन में कौन-सा कर्म सब फलीभूत होगा, यह व्यक्ति के संज्ञान में नहीं होता। कर्मों का परिपाक तो जन्म-जन्मांतरों का खेल है और इस क्रम में विधाता ने कहीं कोई त्रुटि नहीं की है। सभी व्यक्तियों को अपने किए हुए शुभ एवं अशुभ कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। कोई भी इससे बच नहीं सकता, चाहे वह भगवान ही क्यों न हों! इस मामले में विधाता ने किसी के साथ कोई भी पक्षपात नहीं किया है। हर व्यक्ति समयानुसार अपने शुभ-अशुभ कर्मों के फलों का भोग करता है और यह प्रक्रिया तभी थमती है, जब व्यक्ति निष्काम भाव से प्रभु को समर्पित करते हुए निरंतर लंबे समय तक कर्म करता है। ऐसे किए गए निष्काम कर्म से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतरों के संस्कारों का नाश होता है और व्यक्ति सहीं अर्थों में परमतत्व को समझ पाता है।

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