खतरनाक होता सेल्फी एडिक्शन
पल्लवी मिश्रा
सीनियर रिसर्च फेलो
पत्रकारिता विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
इससे पहले भी इसी वर्ष 11वी क्लास में पढने वाला
एक छात्र तेज़ रफ्तार ट्रेन के साथ सेल्फी खींचने की कोशिश में हादसे का शिकार हो
गया था | मुंबई में भी सेल्फी क्रेज की वजह से कुछ लडकियां समुद्र में गिर गयी थी
जिसमे से एक की मौत हो गयी थी | मथुरा में भी 3 कॉलेज के छात्र तेज रफ्तार ट्रेन
के साथ सेल्फी लेते समय जान गवां बैठे थे | पिछले वर्ष मुंबई में एक 14 वर्षीय
स्कूल छात्र की भी सल्फी लेने के चक्कर में तब मौत हो गयी थी जब वह एक खड़ी ट्रेन
के डिब्बे के ऊपर सेल्फी लेने की कोशिश कर रहा था और बिजली का झटका लग गया था | भारत
में ऐसे और भी कई हादसे हुए है जिसमें लोग सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान से
हाथ धो बैठे है | सेल्फी से हो रही मौत का
आकंडा भारत में लगातार बढ़ रहा है लेकिन फिर भी लोग इन हादसों से सबक नहीं ले रहे
है | वाशिंगटन पोस्ट की 2015 रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में लोगों ने सेल्फी लेने
के दौडान अपनी जान गवाई है | इससे साफ़ हो रहा है कि भारत में लोगों कि सेल्फी सनक
कम नहीं हो रही है | ऐसे तो मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे सामाजिक संपर्क में
रहने की आवश्यकता है | टेक्नोलॉजी विकास ने जब सेल्फी संस्कृति को जन्म दिया तो इसने
लोगों को काफी प्रभावित किया | ये स्वाभाविक भी है की हर मनुष्य को स्वयं को कमरे
में कैद करना और लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलना अच्छा लगता है | ये अटेंशन सीकिंग बिहेवियर है और सामाजिक
रूप से स्वीकार्य है | हालांकि अगर व्यक्ति ज़रुरत से ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने
की कोशिश करता है तो वो अटेंशन सीकिंग बिहेवियर डिसऑर्डर का शिकार हो सकता है | मनोचिकित्सक
मानते है कि बहुत ज्यादा सेल्फी की लत, सेल्फी सिंड्रोम को जन्म देती है जिसे अटेंशन सीकिंग बिहेवियर डिसऑर्डर कहा
जाता है | बरहाल हमें ये समझना आवश्यक है कि टेक्नोलॉजी का विकास सिर्फ हमारी सुविधा
के लिए हुआ है और हमें इससे इतना अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए कि हम किसी विकृति
का शिकार हो जाए या स्वयं की ज़िन्दगी से हाथ धो बैठे |
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