कलयुग में धर्म का एक ही पैर बचा और वह है सत्य

कलयुग में धर्म का एक ही पैर बचा और वह है सत्य:

नगर के सीटोला मोहल्ला में दीक्षित निवास पर चल रही श्रीमद भगवत कथा के अंर्तगत कथा कहते हुए भागवताचार्य राममोहन मुदगल शास्त्री ने कहा कि सतयुग में धर्म के चार पैर थे। त्रेता में तीन ही रह गये, द्वापर में दो पैर बचे, एवं कलयुग के आते ही धर्म का एक ही पैर रह गया और वह है सत्य। धर्म जब कमजोर होता है तो प्रथ्वी को कष्ट होता है। धर्मो रक्षति रक्षित:। कलयुग को पारीक्षत ने चार जगह दी। पहला निवास जुआ खेलने में, दूसरा निवास सुरापान में, तीसरा निवास परस्त्री गमन एवं चौथा निवास हिंसा में दिया। तब कलयुग ने एक और स्थान मांगा तब पारीक्षत ने उसे स्वर्ण में स्थान दे दिया। तव स्वर्ण में स्थान मिल जाने पर कलयुग पारीक्षत के मुकुट के माध्यम से उनके मस्तिष्क में प्रवेश कर गया और उसने पारीक्षत की बुद्धि विचलित कर दी। इसके बाद कथाव्यास श्री शास्त्री ने कहा कि धर्म सम्प्रदाय के नाम पर जो विश्व में खून खरावा करे वो धर्म नही हो सकता। जब सम्प्रदाय विशेष से संबंध जुड जाता है तो हम धर्म को विभिन्न नामों से जानने लगते है। कथा के अंत में पारीक्षत श्रीमती रामश्री नाथूराम दीक्षित द्वारा श्रीमदभागवत कथा की आरती उतारी गयी। प्रसाद वितरण किया गया।

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