पुनर्जन्म:
कितना सच कितना झूठ
अभिनव
हिन्दू धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानता है तथा हिन्दुओं का विश्वास है
कि पूर्व जन्मों का कर्मफल इस जन्म में तथा इस जन्म का अगले में भोगना पड़ता है। स्थूल
काया में नये जन्म के संस्कार आने से पूर्व शिशु कभी हंसता-मुस्कराता है। कभी अनायास
भयभीत हो जाता है तथा रोने लग जाता है। यह सब उसकी पूर्वजन्म की स्मृति का नतीजा है, जो अवस्था बढ़ने पर धीरे-धीरे
क्षीण होती जाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार पूर्वजन्म की स्मृति अधिकतम आठ वर्ष
तक रह सकती है। हालांकि कुछ मामलों में अपवाद अवश्य हुए हैं।
दो जन्मों के अन्तर में आत्मा कहां रहती है। इस प्रश्न का कोई समुचित उत्तर
आज तक नहीं है। न ही दो जन्मों के बीच सम्बंधें का। साधरणतया यह अंतर पांच वर्ष का
माना गया है। पुर्नजीवन के अनुभवों में जीवात्मा को यमराज के सम्मुख प्रस्तुत कर दिये
जाने के संस्मरण अनूठे हैं। हरियाणा में जन्मे ग्यारह वर्षीय देवीसिंह ने बताया कि
तीन जन्म पूर्व उसकी हत्या होने पर वह पांच वर्ष तक प्रेत योनि में छह प्रेत साथियों
के साथ रहा। उस अवधि में उसने हत्यारों को खूब तंग किया और अनेक दफा उनके ट्रक उलट
दिये। उसी फेर में एक हत्यारे की मृत्यु भी हो गई। तत्पश्चात् मथुरा जिले के नवगांव
में जन्मा। परन्तु दो वर्ष में मर गया। इसके बाद उसे यमराज के सम्मुख पेश किया गया।
यमदेव का रंग काला था, हाथों में कड़े
थे। गले में माला व सामने एक खुली हुई पुस्तक रखी थी। देवीसिंह ने बताया कि यमराज उसे
कुत्ते की योनि प्रदान करना चाहते थे पर वह रोने लगा ओर उसने वादा किया कि वह गोदान
आदि कर कुछ पुण्य अर्जित करेगा, तो उसे मानव योनि में भेज दिया गया। देवीसिंह ने बताया कि बिना
पहियों की एक रेलगाड़ी में उसने यात्रा की और पहाड़ों के बीच होता हुआ वह वर्तमान जन्म
के अल्लिकापुर में आ गया।
प्रेत योनि में भटकने और अपने पति को
नौ जन्म बाद ढूंढ निकालने की रोमांचक दास्तां अवंती की है। संवत् 1917 में घरपैठण अब महाराष्ट्र
के निवासी विश्वम्भर बेल पाठक की पत्नी थी अवंती। एक दिन वह (पाठक) अपनी पत्नी के संग, ससुराल जा रहे थे कि
डाकूओं ने हल्ला करके पाठक को मार डाला। अवंती ने भी वहीं प्राण त्याग दिये। बेल पाठक
ने ग्यारह सौ वर्ष की अवधि में नौ जन्म लिये। जबकि अवंती प्रेत योनि में चली गई। उस
अवधि में वह निरंतर अपने पति को भू-लोक में तलाशती रही। अंततः सन् 1954 में मध्य प्रदेश के
जिला खरगोन के सकराली ग्राम में अवंती ने विश्वम्भर पाठक को ढूंढ निकाला। वह श्री पाठक
का नवां जन्म था। वहां उसने गोपाल सिंह राजपूत के रूप में जन्म लिया था। एक दिन दसवीं
शताब्दी के परिवेश में सजी,
युवती
अवंती, युवा गोपाल
सिंह के सामने सहसा प्रकट हो गयी। उसके बाद वह अपने पूर्वजन्म के पति, उसकी वर्तमान जन्म की
पत्नी रूपकुवंर एवं अन्य परिवारजनों की विपत्तियों से रक्षा करती रही। राजस्थान के
ब्यावर के पास एक गांव की बालिका लक्ष्मी ने अपने छह जन्मों का ब्यौरा देकर एक परामनोवैज्ञानिक
को दंग कर दिया था। उसने बताया कि वह पहले जन्म में मोर, दूसरे में कोयल, तीसरे में एक वैश्य-बाला।
चैथे में विप्र-कन्या, पांचवे में
एक शूद्र पुत्री थी। पांचवे जन्म में उसका विवाह हुआ था। वह एक बच्चे की मां बनी थी, किन्तु बाद में पति
से झगड़ा हो जाने के कारण उसने कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। वह छठे जन्म में
लक्ष्मी नाम से है।
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