माया का मोह धोखा है

माया का मोह धोखा है

-सुमित्रा साहू

विवेकवान के लिए हर दिन वही है। पूर्ण कृतार्थ पुरुष दिन-रात, मास वर्ष और ऋतु से ऊपर अविनाशी, नित्य निजस्वरूप में लीन होता है। स्वरूपस्थिति में संसार नहीं है, फिर संसारगत दिन-रात आदि वहां कहां है। हम इंद्रियों के भरोसे संसार को देखकर उसमें उलझ जाते हैं। हमें चाहिये कि सारे इंद्रिय झरोखों को बंद कर अपने स्वरूप स्थिति घर में लौट आएं, और वहां अविचल विश्राम करें। हम संसार से मोहवश न लौटना चाहें, तो भी एक दिन शरीर छूट जायेगा और सदा के लिए संसार ओझल हो जाएगा।
जो ढीला-ढाला है, जिसकी संकल्पशक्ति दृढ़ नहीं है जो अनिश्चित मनोदशा में जीता है, जो असावधान है तथा जो अपने लक्ष्य की दिशा में निरंतर श्रमशील नहीं है वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता। सच्चाई, दृढ़ संकल्पशक्ति सावधानी, अटूट श्रम, संयम और विवेक से चलने वाले का भीतरी तथा बाहरी जीवन चमक जाता है। कायागढ़ की लड़ाई में पूर्ण विजयी व्यक्ति ही सफल जीवन है। शरीरांत के समय जीव के साथ क्या रह जाता है। अतएव सारी उपलब्ध माया बीच में ही छूट जाती है। अतंत: शेष तो अपना आपा ही रहता है। स्वास्थ्य ठीक है, साथी अनुकूल है, भोजन, वस्त्र तथा आवास की व्यवस्था सुन्दर है, सर्वत्र स्फूर्ति है, लोक मंगल के कार्यक्रम उन्नति पर है, सारी स्थितियां ही सफल हैं साथ-साथ भीतर में पूर्ण शांति है। अतएव जीवन सफल है।

उक्त बातों में यह ध्यान देने योग्य है कि आत्म शांति एवं स्वरूपस्थिति ही हमारी स्थायी संपत्ति है। शेष सफलताओं का संबंध शरीर के साथ ही समाप्त हो जाने वाला है। अतएव जीवन की अन्य सफलताओं में कहीं भी अहंता ममता करने योग्य नहीं है। सर्वत्र निर्मोह रहना ही कर्तव्य है। किसे देखना चाहते हो, किसे पाना चाहते हो, कहां पहुंचना चाहते हो, किसमें लुब्ध होते हो तुमसे जो कुछ भिन्न है वह सब विजाति तथा क्षणिक है। अत: अपनी आत्मा को देखो, उसकी स्थिति में ही पहुंचो और उसी में लीन हो जाओ। तुम्हारा और कुछ नहीं है। यदि तुम दुनिया की कोई वस्तु प्रिय मानोगे तो अपने प्रियतम स्वयं स्वरूप चेतन में नहीं मिल सकोगे। अतएव स्वयं में लौटो। जीवन ऐसे बनाओ कि आज आगे तथा अन्य में पूर्ण शांति मिले।
राग द्वेष से जितनी विरक्ति रहेगी उतना अत:करण स्वच्छ, सरल तथा शांत रहेगा। बड़े-बड़े ऐश्वर्यवानों का क्षण पल में सच छूट जाता है इसलिए यहां किसी वस्तु को लेकर अपने मन को मैला न करो। यहां किसी वस्तु का महत्व नहीं है। महत्व है मन की निर्मलता का आदमी कितना ठाट बनाता है परन्तु वह अचानक एक दिन सब कुछ छोड़कर चल देता है। अतएव माया का मोह धोखा है।

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