सरकार की एक्साइज ड्यूटी से परेशान सराफा कारोबारी

सरकार की एक्साइज ड्यूटी से परेशान सराफा कारोबारी

रियल एस्टेट और सोने का कारोबार दो ऐसे क्षेत्र हैं जो हर किसी को अपने मोहपाश में बांध् लेते है। पिछले कई सालों से इन दोनों व्यवसायों में कई तरह के घोटाले और टैक्स चोरी के इल्जाम भी लगते रहे है। लेकिन इस बार के आम बजट में आभूषणों की खरीद पर एक प्रतिशत की एक्साइज़ ड्यूटी लगाने से स्वर्णकार कापफी उत्तेजित नज़र आते है। इस थोपी गई एक्साइज ड्यूटी के विरोध् में सराफा कारोबारियों की चल रही हड़ताल को भी अब एक महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन केंद्र सरकार उनकी मांगों को लेकर कहीं द्रवित होती दिखलाई नहीं देती। 

यहां यह बताना जरूरी है कि सोने का आयात हमारे विदेश व्यापार घाटे का एक बड़ा कारण है जिस पर अंकुश लगाने के लिए मोदी सरकार ने दोहरी रणनीति अपनाई है। मोदी सरकार ने एक तरपफ सोने के जे़वरों की बिक्री पर एक प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगा दिया है तो दूसरी तरफ गोल्ड मोनोटाइजे़शन स्कीम को पिफर से लाने का एलान कर दिया है। लेकिन इन दोनों मोरचो पर खासा प्रतिरोध् भी हो रहा है। एक प्रतिशत की एक्साइज ड्यूटी को लेकर देशभर के स्वर्णकार अब सड़कों पर उतर आए है, जबकि गोल्ड मोनेटाइजे़शन स्कीम में मंदिरों ने अपना पफच्चर पफंसा दिया है। उनकी मांग है कि वे अपना सोना तभी जमा करायेंगे जब योजना अवधि पूरी  होने पर सोने के बदले सोना मिलेगा और ब्याज भी सोने के रूप में चुकाया जायेगा।

जनता को सोने के मोहपाश से मुक्त कराने के लिए सरकार पिछले साल तीन योजनाएं - गोल्ड मोनेटाइजेशन, गोल्ड बांड और गोल्ड कामन एंड बुलियन स्कीम को लाई थी। लेकिन वह सपफल नहीं हो पाई। गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम के जरिये सरकारी बैंकोंं को मात्रा तीन टन सोना ही मिल पाया है। जबकि हमारे देश की जनता और मंदिरों के पास 20,000 टन से ज्यादा का स्वर्ण भंडार है। अनुमान है कि केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के पास ही बीस अरब रूपये के स्वर्ण भण्डार है। शिरडी के साई मंदिर और मुंबई के सि(ि विनायक मंदिर के पास भी अकूत ध्न-दौलत है। इन मंदिरों का सोना यदि बाजार में आ जाए तो सोने का आयात अपने आप कम हो सकता है।

उध्र मंदिर के संचालकों का तर्क है कि उन्हें दान में मिला सोना लोगों की धर्मिक भावनाओं का प्रतीक है जिसकी तिजारत नहीं की जा सकती। 

वैसे भी पश्चिमी देशों में जहां सोने जैसी पीली धतु को एक डेड-इन्वेस्टमैंट माना जाता है वहीं पर भारत के ज्यादातर लोग इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा व आर्थिक सुरक्षा की गांरटी मानते है। पश्चिमी देशों में सोना खरीदने वाले लोग अपनी बचत का केवल तीन प्रतिशत हिस्सा ही इस पर खर्च करते हैं जबकि भारत में यह आंकड़ा 33 पफीसदी है। इसलिए थोडद्या पैसा जमा होने पर यहां हर कोई सोना खरीदने की जुगत में लग जाता है। यहां अक्षय तृतीया और ध्नतेरस जैसे पर्व तो सीध्े सोने की खरीद से जुडे़ त्योहार बन गए है। अनुभवी लोगों का कहना है कि हमारे यहां किसी भी शादी में तीस से पचास प्रतिशत खर्च तो सिपर्फ सोने के आभूषण खरीदने में ही व्यय हो जाता है और महिलाओं के लिए यही सोना उनके आडे़ वक्त का बीमा है। कानूनन जेवन और गहने भी स्त्राीध्न की श्रेणी में आते हैं जिन पर विवाहितों का एकाध्किार होता है।

इस वक्त भारतीय रिजर्व बैंक के पास मात्रा 557.7 टन सोना है जो हमारी मुद्रा स्थिरता के लिए आवश्यक है। वैसे भी सोने को आर्थिक सि(ांतों के तराजू में नहीं तोला जा सकता। मोदी सरकार की मंशा भलें ही लोगों के घरों में बंद पडे़ सोने को बाहर लाकर उससे देश का विकास करने की हो, लेकिन राजनीति के कारण, सोने से जुड़ी सरकारी योजनाएं अकसर नाकाम हो जाती है। देश के कई लोगों को लगता है कि स्वर्णकारों का मौजूदा आंदोलन बिना वजह का है। इनका विरोध् एक फीसदी उत्पाद शुल्क पर नहीं है बल्कि उनकी काली कमाई पर रोक की वजह से है। कौन नहीं जानता कि बिना बिल के गहने बेचना, बिना हॉल मार्क वाली धतुएं बेचना, औने-पौने दाम पर ग्राहक का माल खरीदना और अपना माल ऊंची दरों पर बेचना अध्किांश स्वर्णकारों की पिफतरत रही है। स्वर्णकारों के काले चिठ्ठे कहीं बेनकाब न हों, यह आंदोलन इसी सोच पर टिका है। स्वर्णकार भी जानते है कि ग्राहकों की कोई यूनियन नहीं है लिहाजा उन्हंे बेचे जा रहे आभूषणों की खोट या कैरेट में कुछ हेरापफेरी हुई हो तो उसे न बताने में ही उनकी भलाई है। सरापफा कारोंबार से जुड़े लोग जहां देश का चक्का जाम करने की घोषणाएं कर रहे हैं वहीं पर इन्होंने श्वेत पत्रा भी जारी किया है। लेकिन मोदी सरकार के वित्त मंत्राी अरूण जेटली इस मसले पर टस से मस होने के मूड में दिखलाई नहीं देते। 

द बुलियन एण्ड ज्वेलर्स एसोसिएशन के संरक्षक नवीन कुमार का कहना है कि जब उत्पाद शुल्क नीति वर्ष 2005 और 2012 में तत्कालीन सरकार लागू करना चाहती थी तब भारतीय जनता पार्टी ने उसका विरोध् कर सरकार को अपना पफैसला वापस लेने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार के सुर भी बदल गए हैं। उन्होंने कहा कि एक तरपफ तो प्रधनमंत्राी मेंक इन इंडिया और मुद्रा जैसी योजना लागू करते हैं, पर दूसरी ओर वे स्वणकारों व कारीगरों पर एक्साइज ड्यूटी लगा कर उनके ध्ंध्े के चैपट करना चाहते है। 

इसी तरह कंपफडरेशन आॅपफ आल इंडिया टेªडर्स कैट के राष्ट्रीय महामंत्राी प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि आभूषण कारोबार पर एकसाइज ड्यूटी लगाना तर्क संंगत नहीं है। क्योंकि आभूषण कारोबार वाले निर्माता नहीं, व्यापारी है। इस समय सरापफा व्यवसाय से जुडे़ करीब 6 करोड़ दुकानदार, कारीगर और विक्रेता अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है और एक करोड़ लाख का नुकसान भी हो चुका है। एक्साइज ड्यूटी न हटने के कारण चल रही हड़ताल का ज्यादा असर उन कारीगरों पर ज्यादा पड़ रहा है जिनके चूल्हे तक भी नहीं जले है। दिल्ली के करोलबाग में रहने वाले कई बंगाली कारीगर भुखमरी की आशंका से अपने घर वापस लौट रहे है। यदि यही हालत रहे तो स्वर्ण कारोबार से जुडे़ सोना गलाने वाले, ज्वेलरी पर डाई करने वाले, चेन व गोलियां बनाने वाले, सोने पर पालिश, कटिंग व उनकी पैकिंग करने वाले कई कारीगरों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। कईयों ने सोने की तार ढालने के लिए ज्वेलरी भेजना भी बंद कर दिया है। कुछ कारीगर सुबह-शाम हड़ताल का समर्थन तो करने जाते हैं लेकिन वे भी कहते है कि इस हड़ताल ने हमारी जिंदगी में ब्रेक लगा दिया है। ऐसे में घर खर्च के लिए पैसा और रोगी मां-बाप के लिए पैसा कहां से लाएं? उध्र सरापफा कारोबार से जुडे़ कई व्यापारियों का कहना है कि हम पहले से ही राज्य व केंद्र सरकार को टैक्स दे रहे हैं। हम पहले से ही राज्य व कंेन्द्र सरकार को टैक्स दे रहे है। 10 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी के अलावा दो लाख से ज्यादा आभूषण की खरीदारी पर एक प्रतिशत टैक्स, एक प्रतिशत वैट भी शामिल हैं। इसके अलावा हम सर्विस टैक्स भी देते है। इतने सारे टैक्स देने पर भी हम पर एक्साइज ड्यूटी लगाना सैधंतिक तौर पर गलत है। 

द बुलियन एंड ज्यूलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राम अवतार वर्मा का कहना है कि एक्साइज ड्यूटी एक तरह का मैन्यूपफैक्चरिंग टैक्स है जबकि आभूषण कारोबार मैन्यूपफैक्चरिंेंग उद्योग नहीं है। यह साइकिल या स्टील जैसा उद्योग भी नहीं है जहां एक ही छत के नीचे सारा उत्पादन होता है। हम सोना उत्पाद नहीं करते। हम तो व्यापार करते हैं। खादान से सोना निकालने और ग्राहक तक पहुंचाने के दौरान यह करीब दस कारीगरों के बीच से गुजरता है। यदि एक्साइज ड्यूटी लगा दी जाती है तो इससे कारीगरों की परेशानियां ज्यादा बढे़गी और उन्हें भी इसका हिसाब किताब रखना होगा कि किसका कितना सोना आया है? अगर वित्त मंत्राी यह कहते हैं कि कोई भी एक्साइज इंस्पैक्टर किसी कारोबारी को परेशान नहीं करेगा तो उनके बयान से यह बात भी अपरोक्ष रूप से सामने आती है कि इंस्पैक्टर राज आभूषण व्यापारियों को परेशान करता है। इस पेशे में शामिल कारीगरों के पास स्किल तो है लेकिन वे कम पढे़-लिखे है। जब उन्हें हर आभूषण का हिसाग किताब रखना होगा तो गलतियों की गुंजाइश भी बने रहेगी। सरकार कहती है कि जीएसटी आने पर यह ड्यूटी उसी में मर्ज हो जाएगी तो पिफर सरकार को इसे लागू करने की जल्दबाजी हमारी समझ से बाहर है। पैनकार्ड की अनिवार्यता लागू होने से सोने के कारोबार में खासी गिरावट देखी जा रही है।

यह ठीक है कि सरापफ़ा कारोबारियों पर एक पफीसद उत्पाद शुल्क लगाने से केंंद्र को कोई पफायदा नहीं होगा बल्कि उसे वसूलने में अध्कि खर्च होगा और साथ ही इंसपैक्टर राज को भी बढ़ावा मिलेगा।

तो आखिर इस समस्या का हल क्या हो सकता है? राजनीति करने वाले तो इस मुद्दे को भी अपना वोट बैंक बनाने की सोचते है। परन्तु मेरे हिसाब से इस समस्या को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार को ऐसी कमेटी बनानी चाहिए जिसमें सरकार समेत सरापफा कारोबारियों के नुमांइदे भी शामिल हो। वे आपस में बातचीत कर जो भी नीति तैयार करें उसी को अमल में लाना बेहतर होगा।
- जगदीश चावला


 

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