“तुम रक्षक काहू को डरना (लघुकथा)”

कहते है कि विश्वास से बड़ी से बड़ी जीत हासिल की जा सकती है और यदि रामदूत के हाथ में जीवन की डोर दे दी जाए तो फिर क्या असंभव है। इसी विश्वास की कड़ी को गोपाल ने अपने जीवन में अनुभव किया। गोपाल की जिंदगी का सबसे अच्छा नियम यह था कि वह पूरे दिन में किसी भी समय एक बार हनुमान चालीसा का वाचन अवश्य किया करता था। अगर वह उनकी कृपा को अनुभव करें तो जीवन में भयंकर अवसाद के क्षणों को पार करने की भी शक्ति उसे मिल सकी। पत्नी की बीमारी के क्षणों में भी उसने चेहरे पर कभी दु:ख जाहिर नहीं होने दिया।

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ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण से सब कुछ उसी पर छोड़ दिया। समय के अनुरूप स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार होने लगा। जब गोपाल को हृदयघात हुआ तब भी एक अनजान शक्ति उसे हिम्मत दे रही थी, फिर ईश्वरीय कृपा से उसने समय रहते अपनी बीमारी का निदान कराया। जीवन में कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए। कार चलाना भी गोपाल का एक सपना ही था। उसने उम्र को दरकिनार करते हुए कार चलाना सीखना शुरू किया और यह क्या था, एक बार दुर्घटना का शिकार होते-होते भी वह यकायक बच गया। अब आई अकल्पनीय कोरोना त्रासदी की घटना! पता नहीं कब संक्रमण हुआ, जिस अस्पताल में ईलाज हुआ, वहाँ आस-पास और परिजनों का पूर्ण सहयोग मिला और सब कुछ ठीक हो गया। 

ईश्वरीय शक्ति किस तरीके से असंभव को संभव बना सकती है, यह एक सच्ची अनुभूति है। बहुत पहले सुना था कि ईश्वर के प्रति आस्था एक विश्वास है जो कभी निष्फल नहीं होती। बस परीक्षा के क्षण आते रहते है। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि यदि बिना संशय के ईश्वर को दृढ़ विश्वास से पुकारा जाए, तो कार्य का सिद्ध होना निश्चित रहता है। हो सकता है कि धैर्य की परीक्षा हो। भगवान तो भक्त के अधीन है। वे तो भक्त की पुकार पर दौड़े चले आते है। भक्त की रक्षा में तो प्रभु को भी सजग रहना पड़ता है। इसलिए जीवन की कुछ विषम परिस्थितियों को ईश्वर के विश्वास के सहारे पार करते चलें, क्योंकि ईश स्मरण ही मनुष्ययोनि का मूल ध्येय है। 

*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*



from Awazehindtimes Page https://ift.tt/3rmFcaa December 01, 2021 at 06:36AM

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